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पत्रिका में प्रकाशन के लिए दिशानिर्देश
वाग्धारा पत्रिका प्रकाशन के लिए प्रस्तुत पांडुलिपियों की गोपनीयता, सुसंगतता और सम्मान के लिए नैतिक रूप से जिम्मेदार है।
शोध पत्र/लेखों का पैटर्न इस प्रारूप में बनाए रखा जाना चाहिए
- पत्र का शीर्षक
- लेखक का नाम पूर्ण आधिकारिक पदनाम और ईमेल के साथ
- कोई भी एक शैक्षणिक आईडी: ऑर्किडआईडी/शोधकर्ता आईडी/विद्वान आईडी/गूगल स्कॉलर आईडी/रिसर्च गेट आईडी/अकादमिक आईडी
- सार
- कीवर्ड 4-5
- परिचय
- अवलोकन/विश्लेषण
- परिणाम
- संदर्भ/ग्रंथ सूची
वाग्धारा के लिए संदर्भ-साँचा
हिंदी के शोध-संसार में वैसे तो अब लोग बड़े पैमाने पर संदर्भन करने लगे हैं, लेकिन अराजकता या उदासीनता अभी-भी कम नहीं है। हमारी कोशिश होगी कि लम्बे अरसे में विकसित और निहायत लोकप्रिय शिकागो या हार्वर्ड मैनुअल जैसी वैश्विक संदर्भन प्रणालियों का मूलतः इस्तेमाल करते हुए उसे भाषा के स्थानीय व्यवहार के मुताबिक़ अनुकूलित करें। लेखक/लेखिकाओं से अपील है कि वे अपने आलेख का शब्द-संयोजन करते वक़्त इन चीज़ों का ख़याल ज़रूर रखें, ताकि हमें सम्पादन में और सजग पाठकों को पढ़ने में कम मेहनत करनी पड़े। शोधपत्र में नाना प्रकार के स्रोतों को संदर्भित करने का तरीक़ा नीचे मिसाल दे कर सिलसिलेवार समझाया गया है।
ख़याल रहे कि कुछ मामलों में हमारा तरीक़ा इन तरीक़ों से अलग है। पहली बात, हम मूल आलेख में संदर्भ न डालकर फुटनोट का इस्तेमाल करेंगे, और लेख के आख़िर में एक ग्रंथ-सूची देंगे। दूसरी बात, हम फुटनोट व ग्रंथावली दोनों ही जगहों पर डॉट का इस्तेमाल करेंगे, जबकि मूल आलेख में पूर्ण विराम का। और, हमारे यहाँ जैसा रिवाज है नाम वैसे ही रखेंगे, यानी पहले पहला नाम, फिर उपनाम, और ग्रंथावली भी हिंदी वर्णक्रमानुसार इसी ढर्रे पर चलेगी। हमारे यहाँ लेखक अपने नाम के पहले डॉक्टर/डॉ. या प्रोफ़ेसर/प्रो. लगाते देखे गये हैं, हम उनके छोटे रूप से भी परहेज़ करेंगे, सिवाय प्राथमिक स्रोतों के, जैसे मोती बी.ए. अगर अपने तखल्लुस के साथ लिखते थे तो हम उनकी तमाम रचनाएँ मोती बी.ए. के नाम से ही डालेंगे। संक्षेप में नाम लिखते समय डॉट का प्रयोग करें और स्पेस न दें, जैसे : जी.पी. श्रीवास्तव, न कि जी. पी. श्रीवास्तव। विख्यात संस्थाओं या देशों के नाम लिखते समय डॉट लगाने की आवश्यकता नहीं है, जैसे : यूनेस्को, न कि यू.एन.ई.एस.सी.ओ.; या यूके, न कि यू.के.।
हम नुक़्ते का प्रयोग भी करेंगे, क्योंकि यह कुछ अंग्रेज़ी और उर्दू शब्दों के लिए ज़रूरी है। मिसाल के तौर पर, जुल्फ़िक़ार बुखारी, ज़िजेक, जीटीवी, क़यामत, फ़रमाइश, ग़ज़ल, ख़याल, वगैरह। उसी तरह, हम हमेशा अर्धचंद्र या चंद्र बिंदु का इस्तेमाल करेंगे, जहाँ भी लगता है, जैसे कि 'फुटबॉल' या 'ऑल इंडिया रेडियो' या फिर 'हँसना' या 'पाँच' में। ख़याल रहे कि अगर किसी भी उद्धृत दस्तावेज़ में अगर नुक़्ते / चंद्र बिंदु का इस्तेमाल मूल में नहीं हुआ है तो हम अपनी तरफ़ से न लगाएँ। उसी तरह अगर देसी पंचांग / संवत् का प्रयोग हुआ है तो उसी का इस्तेमाल करें। जहाँ तारीख़ साफ़ नहीं / अनुपलब्ध है, वहाँ इसका जिक्र ज़रूर हो। कोलन या विसर्ग लगाते समय ध्यान रखें कि उसके दोनों तरफ़ स्पेस हो। हाँ, अगर किसी अंक के तुरंत बाद विसर्ग लगाया जा रहा है तो स्पेस केवल उसके बाद आएगा। हर जगह अरबी अंकों यानी 1, 2, 3, 4 आदि का प्रयोग करें।
फुटनोट में किताब के संदर्भन का क्रम :
पाद-टिप्पणी के रूप में संदर्भ का संक्षिप्त रूप इस्तेमाल किया जाएगा, लेकिन पृष्ठ संख्या अवश्य लिखी जाएगी। जैसे : लेखक का नाम (कोष्ठक में प्रकाशन का वर्ष) : पृष्ठ संख्या.
मिसाल : सुमित सरकार (1985) : 21.
लेख के अंत में दी जाने वाली संदर्भ-सूची में किताब के सम्पूर्ण संदर्भन का क्रम :
सुमित सरकार (1985), मॉडर्न इंडिया : 1885-1947, मैकमिलन, लंदन.
जाहिर है कि यहाँ पृष्ठ संख्या नहीं देनी है।
अगर वही संदर्भ फुटनोट में दोबारा आ रहा है, तो महज़ लेखक के नाम से काम चला सकते हैं, पर साथ में विसर्ग लगा कर पृष्ठ संख्या देना लाज़िमी होगा। अगर एक ही संदर्भ लगातार फुटनोट में है, तो 'वही : पृष्ठ संख्या' से काम चल जाएगा।।। अगर पृष्ठ भी नहीं बदला तो सिर्फ़ 'वही' पर्याप्त होगा। अगर लेखकों या सम्पादकों के दो नाम हैं तो पूरे जाएँगे, अगर दो से ज़्यादा, तो दोनों के बाद वगैरह लगाएँ। लेकिन पहले फुटनोट और ग्रंथ-सूची में सारे नाम, पूरे जाएँगे। अगर किताब के एक से ज़्यादा संस्करण छप चुकी है तो जिस संस्करण का इस्तेमाल हुआ है, उसके ज़िक्र के साथ कोष्ठक में मूल प्रकाशन का साल भी जाएगा। अगर एक ही रचनाकार की एक नाम से एक ही साल की दो शीर्षक-रचनाएँ उद्धृत की गयी हैं तो उनके हवाले में भेद करने के लिए फुटनोट/ग्रंथावली में रचना के नाम के बाद प्रकाशन वर्ष के साथ क, ख... आदि लगाया जाए।
मिसाल :
रामचंद्र गुहा (1982 क), 'फ़ॉरेस्ट्री इन ब्रिटिश ऐंड पोस्ट-ब्रिटिश इंडिया : अ हिस्टोरिकल एनालिसिस', इकॉनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, खण्ड 18, अंक 44 : 1882-1896.
-------------(1982 ख), 'फॉरेस्ट्री इन ब्रिटिश ऐंड पोस्ट-ब्रिटिश इंडिया : ए हिस्टोरिकल एनालिसिस', इकॉनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, खण्ड 18, अंक 45 : 1940-1947.
अगर किताब अनूदित है तो अनुवादक का नाम फुटनोट और ग्रंथावली में किताब के नाम के बाद कोष्ठक में आएगा :
मिसाल : मन्ना डे (2008), यादें जी उठीं : एक आत्मकथा, अंग्रेज़ी से अनुवाद : रक्षा शुक्ला, पेंगुइन बुक्स, नयी दिल्ली.
सम्पादित किताब में छपे लेख :
मिसाल : हरीश त्रिवेदी, 'ऑल काइंड्स ऑफ़ हिंदी : दि इवॉल्विंग लैंग्वेज ऑफ़ हिंदी सिनेमा', आशिस नंदी व विनय लाल (सं.), फिंगरप्रिंटिंग पॉपुलर कल्चर : द मिथिक ऐंड दि आइकॉनिक इन इंडियन सिनेमा, ऑक्सफ़र्ड युनिवर्सिटी प्रेस, नयी दिल्ली : 51-86.
पत्रिका-आदि में छपे लेख :
रचनाकार (प्रकाशन वर्ष), 'लेख का नाम', पत्र का नाम, खण्ड, अंक, किस पृष्ठ से किस पृष्ठ तक, आख़िर में अगर ख़ास पृष्ठ का जिक्र करना हो तो :
मिसाल : प्रेमलता वर्मा (2001), 'इब्ने-मरियम हुआ करे कोई', बहुवचन, वर्ष 2, अंक 8 (जुलाई-सितम्बर) : 110-128, 115.
पत्रिका के आलेख :
मिसाल : बजरंग बिहारी तिवारी (2012), 'केरल में दलित आंदोलन और दलित साहित्य', कथादेश, वर्ष 32 : अंक 5 (जुलाई) : 76.
अख़बार में छपी रचना या रपट :
लेख : दीपानिता नाथ, 'रेडियो रिवाइंड', आई : द संडे एक्सप्रेस, नयी दिल्ली, 10 अगस्त, 2008.
रपट : 'यह क्षेत्र हिंदी में संकट का समय : असगर', जनसत्ता (2005), दिल्ली, 20 मार्च : 7.
छपे हुए साक्षात्कार के हवाले के लिए : साक्षात्कार देने वाले का नाम > शीर्षक व बातचीत करने वाले का नाम उद्धरण चिह्नों के बीच > किताब है तो लेखक से शुरू करके किताब वाला संदर्भन, अगर पत्रिका है तो पत्रिका वाला।
मिसाल : विश्वनाथ त्रिपाठी, 'रामविलास शर्मा 1950 में बीटीआर वाले माने जाते थे' : अजेय कुमार से बातचीत, उद्भावना (रामविलास शर्मा महाविशेषांक : (सं.) प्रदीप कुमार), अंक 104 : 199
अगर बातचीत ख़ुद लेखक/लेखिका ने की है तो ज़िक्र यूँ होगा : लेखक/लेखिका द्वारा साक्षात्कार, 13 अक्टूबर, 2005, नयी दिल्ली.
अभिलेखागार की सामग्री का हवाला :
होम डिपार्टमेंट, 42-48/नवम्बर 1916, ए. जेल्स, नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ़ इंडिया, (आगे एनएआई).
अदालती मामलों / फ़ैसलों का हवाला यूँ दिया जाएगा :
ऑल इंडिया आईटीडीसी वर्कर्स यूनियन एवं अन्य बनाम आईटीडीसी एवं अन्य, (2006).
2007एआईआर 301, (2006) 10 एससीसी 66.
विश्वव्यापी वेब से ली गयी सामग्री का हवाला यूँ दिया जाएगा :
मिसाल : विकीपीडिया पर 'पान सिंह तोमर' :
http://en.wikipedia.org/wiki/Paan_Singh_Tomar; 28 जुलाई 2012 को देखा गया.
अगर प्रविष्टि हिंदी में है तो उसे हिंदी में दिखाएँ : http://hi.wikipedia.org/wiki/राजेश
खन्ना. कई बार वेब पतों से नक़ल-चेपी करते हुए भारतीय भाषाओं की लिपि बदलकर अबूझ हो जाती है, जिससे बचने का उपाय यह है कि अंग्रेज़ी वेब-पते की नक़ल-चेपी करते समय देसी सामग्री को यथावत अपने वर्ड प्रोसेसर में अलग से टंकित करें.
चलती का नाम गाड़ी, पार्ट-4: यूट्यूब :
http://www.youtube.com/watch?v=KWqkCpybNLo&feature=g-vrec; 30 जुलाई 2010 को संदर्भानुसार देखा/सुना/पढ़ा गया.
अगर लेख फ़िल्म-केंद्रित है, तो ग्रंथावली के साथ फ़िल्मावली भी देनी होगी, जिसमें फ़िल्म का नाम, साथ में निर्माता/निर्देशक और रिलीज़ हुए साल का जिक्र ज़रूरी होगा।
मिसाल : अब दिल्ली दूर नहीं, आरके फ़िल्म्स, निर्देशक : अमर कुमार, 1957. लेकिन मूल आलेख में ब्रैकेट में सिर्फ़ फ़िल्म का नाम व रिलीज़ वर्ष के ज़िक्र से काम चल जाएगा : (अब दिल्ली दूर नहीं, 1957).
1. लेखक को पत्रिकाओं में केवल मूल और अप्रकाशित रचनाएँ ही प्रस्तुत करनी चाहिए, जिनका कोई भाग पहले प्रिंट या ऑनलाइन प्रकाशित न हुआ हो, या किसी अन्य पत्रिका में या उसी समय पुस्तक अध्याय के रूप में विचाराधीन न हो।2. पाण्डुलिपि लगभग 2000-5000 शब्दों में लिखी जानी चाहिए और पुस्तक समीक्षा लगभग 2000 शब्दों में।3. पाण्डुलिपि को हिंदी में कोकिला या मंगल में 12 फ़ॉन्ट आकार का उपयोग करके टाइप किया जाना चाहिए और इसे संपादक को ईमेल द्वारा भेजा जाना चाहिए।4. लेखक को पेपर में अपना नाम, पदनाम, संस्थान/संगठन का पता और ईमेल आईडी का उल्लेख करना चाहिए।5. निम्नलिखित प्लेजरिज्म सॉफ़्टवेयर - ड्रिलबिट/टर्नीटिन/इथेनटिकेट का उपयोग करके प्लेजरिज्म रिपोर्ट, पेपर के साथ अनिवार्य है। प्लेजरिज्म रिपोर्ट के बिना पेपर स्वीकार नहीं किया जाएगा।6. लेखक द्वारा पत्रिका में प्रस्तुत लेख विषय विशेषज्ञ द्वारा ब्लाइंड समीक्षा के अधीन हैं। विषय विशेषज्ञों का एक सहकर्मी समीक्षा पैनल पेपर की गुणवत्ता, विश्वसनीयता और सटीकता का मूल्यांकन करता है और संबंधित क्षेत्र में मौजूदा ज्ञान के लिए इसके योगदान का मूल्यांकन करता है। (अंधा समीक्षा का अर्थ है लेखकों से समीक्षक की पहचान और समीक्षकों से लेखकों की पहचान की गोपनीयता। संपादकों, समीक्षकों, समन्वयकों और सभी शामिल पक्षों को ब्लाइंड रिव्यू प्रक्रिया की इस दो-तरफ़ा गोपनीयता को बनाए रखना चाहिए)।7. समीक्षा के बाद लेखक को पेपर की स्वीकृति/संशोधन/अस्वीकृति का ईमेल प्राप्त होगा। 8. संपादक पेपर में वाक्यांश और विराम चिह्न आदि को संशोधित करने का अधिकार सुरक्षित रखता है। 9. पांडुलिपि को केवल पत्रिका की वेबसाइट के माध्यम से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। 10. लेखक(ओं) को प्रकाशन के तुरंत बाद पत्रिका से एक ईमेल प्राप्त होगा। 11. वाग्धारा एक ओपन-एक्सेस पत्रिका है। पत्रिका में प्रकाशित सभी लेखों का पूरा पाठ बिना किसी प्रतिबंध के ऑनलाइन पढ़ा जा सकता है। जो लोग पत्रिका से किसी भी सामग्री को पुन: प्रस्तुत करना चाहते हैं, उन्हें वाग्धारा के संपादक से पूर्व लिखित अनुमति लेनी होगी। 12. पत्रिका में दिखाई देने वाले लेखों और अन्य सामग्रियों में व्यक्त की गई राय पूरी तरह से संबंधित लेखकों की है और किसी भी तरह से संपादकों या वाग्धारा पत्रिका की राय को प्रतिबिंबित नहीं करती है। वाग्धारा में प्रकाशन के लिए अपना काम प्रस्तुत करने वाले लेखक(ओं) को अपने लेखों में उपयोग की जाने वाली कॉपीराइट सामग्री के लिए अनुमोदन प्राप्त करने की जिम्मेदारी है। वाग्धारा को प्रकाशित सामग्री के लिए कॉपीराइट कानूनों के किसी भी उल्लंघन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए। 13. पत्रिका को लेखक से परामर्श के साथ संशोधित पेपर प्रकाशित करने का अधिकार है, यदि -· कोई गलत या भ्रामक जानकारी प्रकाशित की गई हो।· सामग्री के किसी भी भाग में कोई गलत व्याख्या उत्पन्न होती है।14. निम्नलिखित परिस्थितियों में पत्रिका द्वारा लेखक से परामर्श के साथ पेपर वापस लिया जा सकता है:· साहित्यिक चोरी (ऑनलाइन या ऑफलाइन) की पहचान की जाती है जो यूजीसी दिशानिर्देशों का उल्लंघन करती है।· इसे पहले ही कहीं और प्रकाशित किया जा चुका है।
लेखक की जिम्मेदारियाँ:· पांडुलिपियों के लेखक को सामग्री की मौलिकता और संसाधनों की प्रामाणिकता के बारे में नैतिक ज़िम्मेदारियाँ लेनी चाहिए।· लेखक को कॉपीराइट, पेटेंट, स्वीकृति, संदर्भ, प्रकटीकरण और हितों के टकराव का नैतिक रूप से सम्मान करना चाहिए, जहाँ भी और जिस भी तरीके से लागू हो।· वाग्धारा पत्रिका में प्रकाशन के लिए प्रस्तुत सामग्री साहित्यिक चोरी से मुक्त होनी चाहिए।· लेखक को केवल उसी काम के लिए श्रेय का दावा करना चाहिए जो उन्होंने मूल रूप से खुद तैयार किया है।· लेखक को दूसरों के काम के साथ-साथ अपने स्वयं के संबंधित काम को भी उचित रूप से उद्धृत और स्वीकार करना चाहिए जिसे उन्होंने पहले ही प्रकाशित करवा लिया है और वर्तमान में प्रस्तुत पांडुलिपि में संदर्भ के रूप में उपयोग किया है। यह सुनिश्चित करना लेखकों की ज़िम्मेदारी है, न कि संपादकों या समीक्षकों या पत्रिका के किसी अन्य टीम के सदस्य की, कि प्रकाशन के लिए प्रस्तुत पांडुलिपियों में मूल उद्धरणों के साथ प्रासंगिक पूर्व शोध परिणामों और खोजों को उचित रूप से स्वीकार किया जाए।