About the Journal
‘वाग्धारा’ - बहुभाषिक शोध विमर्श का नया अध्याय
भारतीय साहित्य एवं भाषाओं की विविधता, समृद्ध परंपरा और वैचारिक गहराई विश्व के किसी भी भाषिक परिदृश्य में अपनी विशिष्ट पहचान रखती है। हिंदी, मराठी, ओड़िया, संताली जैसी साहित्यिक भाषाएँ न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर की जीवंत प्रतीक हैं, बल्कि उनमें निहित लोकानुभव, लोकस्मृति और जीवन-संवेदना भारतीय समाज की बहुरंगी संरचना को उजागर करती हैं। इसी साहित्यिक, वैचारिक बहुलता और भाषिक समृद्धि को एक साझा मंच प्रदान करने की दिशा में ‘वाग्धारा’ पत्रिका का प्रकाशन एक विनम्र प्रयास है। यह एक त्रैमासिक, पीयर-रिव्यू और बहुभाषी ऑनलाइन शोध पत्रिका है, जिसका उद्देश्य भारतीय और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भाषा-साहित्य, समाज, संस्कृति और विचार के विविध आयामों पर गंभीर अकादमिक विमर्श को आगे बढ़ाना है।
वर्तमान समय में अकादमिक शोध की दुनिया अंग्रेजी जैसी वैश्विक भाषा के प्रभुत्व से आच्छादित है। अनेक प्रतिभावान शोधार्थी, जिनके पास मौलिक चिंतन और शोध की दृष्टि है, आर्थिक या तकनीकी कारणों से अपने शोधपरक विचारों को प्रतिष्ठित मुद्रित पत्रिकाओं तक पहुँचा नहीं पाते। परिणामस्वरूप, उनके विचार और खोज सीमित दायरे में रह जाते हैं। ‘वाग्धारा’ ऐसे ही शोधकर्ताओं को एक सुलभ, पारदर्शी और समान अवसर प्रदान करने वाला मंच उपलब्ध कराने का माध्यम बनेगी। यह मंच न केवल हिंदी भाषा तक सीमित रहेगा, बल्कि मराठी, ओड़िया, संताली और अंग्रेजी जैसी भाषाओं में भी शोध आलेखों को प्रकाशित करेगा। इस प्रकार, यह पत्रिका भारतीय भाषाओं के बीच संवाद, आदान-प्रदान और सहअस्तित्व की एक नई परंपरा स्थापित करेगीय ऐसी संभावना है।
‘वाग्धारा’ शब्द स्वयं में अत्यंत सार्थक है। ‘वाग्’ का अर्थ है वाणी या वचन, और ‘धारा’ का अर्थ है प्रवाह। अर्थात् विचारों, अनुभवों और अभिव्यक्तियों की निरंतर धारा। इस पत्रिका का नाम अपने आप में उसके उद्देश्य का द्योतक है- भाषाओं की सीमाओं से परे एक ऐसा प्रवाह निर्मित करना जहाँ ज्ञान, विचार और सृजन की धारा निर्बाध रूप से बहती रहे....
‘वाग्धारा’ का प्रमुख उद्देश्य शोध और सृजनशीलता के उस लोकतांत्रिक स्वरूप को बढ़ावा देना है जिसमें किसी एक भाषा या भौगोलिक क्षेत्र का वर्चस्व न हो, बल्कि कुछ प्रमुख भाषा की अपनी आवाज सुनी जा सके। इस दृष्टि से यह पत्रिका एक ‘विचार सेतु’ के रूप में काम करेगी जो क्षेत्रीय और वैश्विक बौद्धिक परंपराओं को जोड़ने का प्रयास करेगी।
संपादकीय एवं समीक्षक मंडल
‘वाग्धारा’ की संपादकीय नीति पारदर्शिता और गुणवत्ता पर आधारित है। पत्रिका का संपादक मंडल हिंदी, मराठी, ओड़िया और संताली भाषा-साहित्य के विषय विशेषज्ञ हैं। पत्रिका की संपादकीय संरचना पत्रिका की बौद्धिक निष्पक्षता और विविधता के प्रति प्रतिबद्ध होगी। साथ ही, पत्रिका के लिए एक सुदृढ़ रिव्यूवर कमेटी (त्मअपमूमत ब्वउउपजजमम) गठित की गयी है जिसमें संबंधित विषयों के विशेषज्ञ होंगे। यह समिति प्रत्येक आलेख की गुणवत्ता, प्रासंगिकता और मौलिकता का मूल्यांकन कर, उसे प्रकाशन हेतु अनुशंसित करेगी। इस प्रक्रिया से न केवल शोध की गुणवत्ता बनी रहेगी, बल्कि शोधार्थियों को भी रचनात्मक समृद्धि प्रदान करेगी।
ऑनलाइन प्रकाशन की दिशा में कदम
तकनीकी विकास के इस युग में डिजिटल माध्यमों ने ज्ञान के प्रसार को पहले से कहीं अधिक सुलभ बना दिया है। ‘वाग्धारा’ का ऑनलाइन स्वरूप इस बात का प्रमाण है कि यह पत्रिका समय की आवश्यकताओं को भलीभांति समझती है। ऑनलाइन प्रकाशन के माध्यम से यह पत्रिका अधिकाधिक पाठकों और शोधकर्ताओं तक पहुँचेगी। आर्थिक दृष्टि से भी यह रूप अत्यंत उपयोगी है, क्योंकि इसके लिए न मुद्रण व्यय की आवश्यकता है, न वितरण की जटिलता। साथ ही, यह पर्यावरणीय दृष्टि से भी बेहतर है- कागज रहित प्रकाशन की दिशा में।
‘वाग्धारा’ केवल एक अकादमिक मंच नहीं है, बल्कि यह सामाजिक प्रतिबद्धता का भी प्रतीक है। यह उन शोधकर्ताओं के प्रति संवेदनशील है जो आर्थिक या संस्थागत सीमाओं के कारण अपने विचारों को व्यापक मंच पर प्रस्तुत नहीं कर पाते। इस पत्रिका का प्रयास है कि हर भाषा, हर वर्ग और हर क्षेत्र के शोधार्थी को समान अवसर प्राप्त हो।
यह पत्रिका यह भी मानती है कि सच्चा ज्ञान किसी एक केंद्र से नहीं, बल्कि विविध अनुभवों और दृष्टियों के संगम से उत्पन्न होता है। इसलिए ‘वाग्धारा’ ऐसे शोध लेखों का स्वागत करेगी जो न केवल विषयगत दृष्टि से गहरे हों, बल्कि सामाजिक चेतना, सांस्कृतिक विरासत, समकालीन प्रश्नों और मानवीय मूल्यों से भी जुड़े हों।
प्रेरणा और परिकल्पना
‘वाग्धारा’ की परिकल्पना किसी संस्थागत दबाव या व्यावसायिक महत्वाकांक्षा से नहीं, बल्कि संवाद और साझेदारी की भावना से उपजी है। एक दिन कुछ शोधप्रेमी मित्रों के बीच बातचीत के दौरान यह विचार आया कि क्यों न एक ऐसी पत्रिका की शुरुआत की जाए जिसमें विविध साहित्यिक भाषाओं के शोध लेखों को समान महत्व दिया जाए। यह विचार धीरे-धीरे रूपाकार लेता गया और ‘वाग्धारा’ के रूप में मूर्त हो उठा।
भविष्य की दिशा
आगामी समय में ‘वाग्धारा’ न केवल शोध आलेख प्रकाशित करेगी, बल्कि इसमें पुस्तक समीक्षा, भाषिक विमर्श, सांस्कृतिक अध्ययन और तुलनात्मक शोध जैसे विविध स्तंभ भी शामिल किए जाएंगे। हम विश्वास दिलाते हैं कि ‘वाग्धारा’ पत्रिका का प्रकाशन मात्र एक अकादमिक पहल नहीं, बल्कि भारतीय भाषाओं और साहित्य के बीच संवाद, सहयोग और समन्वय का बेहतरीन मिशाल बनेगी। यह उन आवाजों को स्थान देने का प्रयास करेगी जो अब तक हाशिए पर थी, और उन विचारों को अभिव्यक्ति देगी जो संस्थागत ढाँचों से बाहर रह गए थे। भविष्य में यह पत्रिका बहुभाषिक भारतीय साहित्यिक परंपरा को एक नये वैश्विक परिप्रेक्ष्य में स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। ‘वाग्धारा’ की यह धारा निरंतर बहे- नए विचारों, नई दिशाओं और नई संभावनाओं के साथ- इसी की शुभकामना आप सभी शोध प्रेमियों से अपेक्षित है।
वाग्धारा एक ओपन एक्सेस पत्रिका है और हम कोई APC (लेख प्रसंस्करण शुल्क) नहीं लेते हैं।
इस पत्रिका की सभी सामग्री OERs (मुक्त शैक्षिक संसाधन) लाइसेंस CC BY-NC-SA के अंतर्गत उपलब्ध है।